तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ाओगे क्या ?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ाओगे क्या ?

कभी जो कदम लड़खड़ाए और 

चाहते हुए भी शरीर साथ ना दे पाए,

तुम्हारी तरफ बढ़ ना पाए तो,

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या ?


तुम्हें चाहा ,तुम्हें जिया 

पर आज जब  कलम की इस स्याही की तरह,

सेहत ने भी साथ छोड़ दिया 

ऐसे में, तुम मेरी जिंदगी में रंग भर पाओगे क्या ?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या ? 


ऐसा लगता है मानो तुम्हारी हाथों को

जोर से पकड़ कर रखा है मैंने ,

तुम्हारी हथेलियों को अपनी 

हथेलियों में जकड़ कर रखा है मैंने ,

अगर मेरी हाथों की पकड़ शिथिल होने लगे,

सांसों की डोर थमने सी लगे,

तब तुम मेरा हाथ पकड़े रह पाओगे क्या ?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या ?


तुम्हारे बिन जिंदा लाश हूं मैं ,

कभी किसी बात पर गर नाराज हो गए तुम ,

तो इस रिश्ते की लाश को दफनाओगे क्या ?

अपनी सांसे दे मेरी जिंदगी महकाओगे क्या ?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या ?


तुम्हारे बिन मन बेचैन रहता,

दिल में एक दर्द सा महसूस होता ,

सुनी आंखें भरी महफिल में तुम्हें ढूंढती,

पर मेरी तन्हाईयों में मैं अकेली खड़ी थी।

तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी ,

पर मुझे तो तुम्हारी आदत सी हो गई थी।

अपनी आदत थोड़ी सी तुम भी बदल पाओगे क्या?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या?


तुम थे मेरी तन्हाईयों में ,

मेरी सांसों में ,

मेरी आंखें बंद हो तो ख्वाबों में ,

आंखें खुली हो तो खयालों में,

तुम कभी मेरे ख्यालों से अलग हो पाओगे क्या ?

अपने ख्यालों को थोड़ा सा बदल पाओगे क्या?

तुम अपना एक कदम मेरी तरफ बढ़ आओगे क्या?

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