नवसृजन

सूरज जब जले,स्वर्णिम रश्मियाँ फैलाये।
निशा ढले, नवसंचार, नवसृजन हो जाये।
ज्यों ज्यों रवि जलन की तीव्रता बढ़े,
जीवन ज्योत से जग जीवन्त हो जाये।

दीपक जब जले, आशा की किरणें जलाये।
तमस टले, प्रकाश पुंज प्रदीप्त हो जाये।।

ज्यों ज्यों दिया जलन की तीक्ष्णता बढ़े।
अनंत ज्योत से घर जगमग हो जाये।।

अहम जब जले, मन की कलियाँ खिल जाये।
द्वेष हटे, दिव्य दर्शन दीप्तमान हो जाये।।

ज्यों जयों  निरहंकार की प्रखरता बढ़े।
ज्ञान योग से परम शांति, ब्रह्म मिल जाये।।

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