तुमसे मिलना अच्छा लगता है।

तुमसे मिलना अच्छा लगता है।

बचपन के सुनहरे दिनों में,
अपने खिलौनों से,
लुकाछिपी के खेल में,
अपने अल्हड़ दोस्तों से,
क्रिकेट और कबड्डी के खेल में,
खेल के मैदान से
मिलना अच्छा लगता है।
        
स्कूल के दिनों में,
टीचर के सारे सवालों का जबाव देकर
सबके स्नेह का पात्र बन जाना,
कहानियों की दुनियाँ के सपने सजाना,
कुछ गीतों को गाना ,कुछ नगमे गुनगुनाना,
संगीत के जादू में खो ही जाना,
अपने क्लास रूम से ,
म्यूजिक रूम में इंस्ट्रूमेंट्स से
मिलना अच्छा लगता है।

मम्मी पापा के सीने से लग जाना,
उनके कदमों तले जन्नत को पाना,
माँ की हाथों का गरमा गरम खाना,
पापा का हर मोड़ पे रास्ता दिखाना
भाई बहनों की प्यारी सी दुनियाँ में,
संग खाना,खेलना,लड़ना झगड़ना,
सारे जहाँ की खुशियों को पा जाना,
उस प्यारे से घर से मिलना अच्छा लगता है।

मेरी जिंदगी में उनका आना,
अपनी खुशबू से घर को महकाना,
अपने से ज्यादा हमसफ़र की फिक्र करना,
जिंदगी के कठोर धरातल पर
चाँदनी सी शीतलता बिखेरना,
हर कदम पर कदम मिलाकर चलना,
उनके होने से ही पूर्णता का एहसास होना,
उनके बिना साँसों का रुक सा जाना,
उनको सोंचते ही होठों पे मुस्कान बिखर जाना,
जिंदगी के इस हसीन मोड़ पर ,
उनसे मिलना अच्छा लगता है।

वक़्त पंख लगा के उड़ता है,
बच्चों की अपनी दुनिया होती है,
बुढ़ापे के दिनों में ही साथी की जरूरत होती है।
इतने सालों में साथ की आदत पड़ गई होती है।
अब साथ छूटने का ख्याल भी डराने लगता है।
इस जहाँ से उस जहाँ तक के सफर में,
हमसफर के साथ  सफर की रीत नहीं ।
फिर बातें होती हैं प्रभु से,भक्ति भाव विह्वलता में,
जीवन के अंतिम मोक्ष पड़ाव में
नित प्रभु से मिलना अच्छा लगता है।



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