प्रेरणा

सुबह से हल्की बूंदाबांदी हो रही थी।आनंद इस खुशगवार मौसम में बालकनी में बैठ कर चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहा था। कभी दोनों बाहें फैलाकर सावन की पहली बूंदों का स्वागत करता तो कभी हथेलियों पर सफेद मोती जैसी बारिश की बूँदों का स्पर्श महसूस कर हार्षित हो उठता। उसे बारिश का मौसम बेहद पसंद था।।इसलिए बारिश का आनंद लेने के सुनहरे मौके को वह कभी हाथ से जाने नहीं देता था। इस मौसम से उसकी खास यादें जुड़ी थी जिसने उस की जीवन शैली और जीवन को देखने का नजरिया ही बदल डाला था।

"उठो रोहन स्कूल के लिए तैयार हो जाओ वरना देर हो जाएगी " नेहा ने रोहन के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे उठाने की कोशिश की।

"मम्मी आज मैं स्कूल नहीं जाऊंगा बारिश हो रही है प्लीज मुझे सोने दो ना"रोहन ने उनींदी आवाज में कहा।

"बेटा ऐसे स्कूल से छुट्टी नहीं करते। बाकी बच्चे पढ़ाई में तुम से आगे निकल जाएंगे और तुम फिर पीछे रह जाओगे"नेहा ने समझाते हुए कहा था ।

"मम्मी आज तो बारिश हो रही है।वैसे भी बारिश में कम बच्चे स्कूल आते हैं । मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूंगा परंतु आज मुझे स्कूल मत भेजो ।मुझे बारिश में कागज की नाव चलानी है।" रोहन ने नेहा से फिर स्कूल ना जाने की जिद की।

अंदर कमरे से आ रही अपने बेटे रोहन और पत्नी नेहा की बातें सुनकर आनंद अचानक अपने बचपन में पहुंच गया। बचपन में जहां बच्चों को खेलना कूदना ज्यादा भाता है ,वहां आनंद को स्कूल जाना बेहद पसंद था। चाहे कोई भी मौसम हो वह स्कूल जाने से पीछे नहीं हटता था।
पढ़ाई में तेज होने के कारण आनंद स्कूल में सबका बेहद प्रिय था । उसे गुरुजनों का विशेष स्नेह, आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त था जिसके कारण वह हर क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त करता रहा था और स्कूल के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि से पुरस्कार प्राप्त करता रहता था। जब प्रधानाध्यापक स्टेज पर सबके सामने कहते कि आनंद हमारे विद्यालय का सबसे होनहार विद्यार्थी है तब स्कूल का प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता था।आनंद के मां बाबूजी पूरे गांव में गर्व से कहते कि हमारा बेटा हमारा नाम रोशन करेगा।
आनंद के पिताजी की गांव में बहुत इज्जत थी। उन्होंने अपनी छोटी सी पगार में आनंद और विमल की परवरिश करने में कोई कमी नहीं की थी। उन्होंने हमेशा ही दोनों भाइयों को कड़ी मेहनत, ईमानदारी और दूसरों की मदद करने का पाठ पढ़ाया था ।
आनंद और विमल दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। हमेशा साथ रहते, साथ खाते पीते, खेलते कूदते ,लिखते पढ़ते और सोते उठते थे। आनंद प्यार से विमल को भाई जी कहकर बुलाया करता ।

"आनंद अब तुम ही समझाओ ना रोहन को बारिश की वजह से स्कूल नहीं जाना चाहता है" नेहा की आवाज सुनकर आनंद की तंद्रा टूटी । वह बालकनी से उठकर बेडरूम में आया। उसने  रोहन को प्यार से अपनी गोद में उठाया और उसके माथे को चूमते हुए बोला "क्या बात है आज मेरे राजा बेटा का मूड स्कूल जाने का नहीं हो रहा है।चलो आज आपको पापा अपनी गाड़ी से स्कूल छोड़ेंगे।कल हमें रामपुर भी तो जाना है फिर हम वहां खूब मजे करेंगे।"

" मेरे अच्छे पापा ''कहता हुआ रोहन बिस्तर से उठ कर आनंद के गले से लिपट गया।

आनंद ने अपनी कार निकाली और रोहन को स्कूल छोड़ने के लिए निकल पड़ा रास्ते में बूंदाबांदी कभी तेज हो जाती तो कभी रिमझिम फुहार का रूप ले लेती । बारिश के कारण चारों तरफ की हरियाली मन को मोह रही थी ।सड़के बिल्कुल साफ और सुंदर  दिख रही थी। सड़क किनारे लगे पेड़ पौधे और फूलों की डालियां झूम झूम कर इस मौसम की पहली बारिश का स्वागत कर रही थी। कार की खिड़की से बाहर का नजारा देखते हुए आनंद फिर से अपने स्कूल के दिनों में पहुंच गया।

गांव के कच्चे रास्ते पर वह और भाईजी एक-दूसरे का हाथ थामे उछलते कुदते स्कूल की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। तभी आसमान को काले काले बालों ने घेर लिया। तेज हवाएं चलने लगी और हल्की बूंदाबांदी ने तेज फुहार का रूप ले लिया था।स्कूल अभी भी थोड़ी दूर था और वे वापस घर भी नहीं पहुंच सकते थे। आनंद ने चारों तरफ देखा पगडंडियों के दोनों तरफ पर खेत में धान के फसल झूम रहे थे और छुपने के लिए आसपास कोई घर नहीं था ।उसे अपने भींगने की चिंता नहीं थी पर उसे अपनी किताबों से बेहद लगाव था।
"भाई जी अब तो हमारी किताबें भीग जाएंगी । दूर-दूर तक छुपने की  कोई जगह नहीं है और स्कूल पहुंचते-पहुंचते तो हम पूरी तरह भीग जाएंगे" कहते हुए आनंद रोने लगा।
भाई जी ने बड़े प्यार से कहा "पहले तू चुप हो जा हम नहीं भीगेंगे । तू मुझ पर यकीन कर।"
भाई जी ने चारों तरफ नजरें  घुमाई तभी उनकी नजर खेत के किनारे लगे केले के पेड़ पर पड़ी। वे झटपट दौड़े और एक केले का पत्ता तोड़कर ले लाये और उसे छतरी की तरह इस्तेमाल करते हुए आनंद के सिर पर फैला दिया ।फिर बड़े प्यार से बोले "छोटे अब तो मुस्कुरा दे देख तू बिल्कुल भी नहीं भींग रहा है।"भाई जी आनंद को प्यार से छोटे ही कहते थे ।
समस्या का समाधान पा आनंद खिलखिला कर हँस उठा और भाई जी की हाथों को थामे उछलते कुदते बारिश की बूंदों का मजा लेते हुए दोनों स्कूल की तरफ चल पड़े।
रास्ते में विमल ने आनंद को समझाया " जिंदगी में समस्या किसी ना किसी रूप में आती ही रहती है ।ऐसे  परेशान होने से सफलता हमसे से दूर हो जाती है। विपरीत परिस्थितियों में हमें हिम्मत से काम लेना चाहिए। कहते हैं ना "जहाँ चाह वहां राह "। किसी भी परिस्थिति में हमें निराश नहीं होना चाहिए। अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखें तो कोई ना कोई रास्ता निकल ही आता है ।बस हमें अपना आत्म विश्वास बनाए रखना होता है ।"

जैसे ही दोनों भाई केले के पत्ते को छतरी की तरह इस्तेमाल करते हुए मुस्कुराते हुए स्कूल पहुंचे गुरु जी ने दोनों को सीने से लगा लिया ।उन्होंने कहा "आज मैं बहुत खुश हूं। मुझे साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि सुनहरा भविष्य तुम दोनों का इंतजार कर रहा है। जिसमें स्कूल तक पहुंचने की इतनी ललक हो कि कोई मौसम , कोई बाधा राह न रोक सकी ,एक दिन वह अवश्य ही बहुत बड़ा आदमी बनेगा।"

गुरु जी ने आगे कहा विमल ! "मैं तुम्हारी जितनी तारीफ करूँ उतनी कम है। तुमने विपरीत परिस्थितियों में स्वार्थ के वशीभूत होकर सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचा बल्कि दूसरों की मदद का भी पूरा ध्यान रखा। "
"ऐसा करके तुमने हमें संदेश दिया है कि हमेशा दूसरों की सहायता करनी चाहिए ताकि वे आगे बढ़ सके । तुम चाहते तो सिर्फ अपने को भींगने से बचा सकेते थे परंतु तुमने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने छोटे भाई को भी भींगने से बचाया ।"

" साथ ही तुमने यह भी साबित कर दिया कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है ।यदि  हम अपनी असफलता के लिए परिस्थितियों को दोष देने की बजाय सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ सीमित संसाधनों का बेहतर उपयोग करें तो कामयाबी निश्चित ही हमारे कदम चूमेगी।"
कहते हुए गुरुजी ने भाई जी को गले लगा लिया था।

इस घटना नेआनंद के मन पर गहरा प्रभाव डाला।समय तेजी से चलता रहा और वह अपने भाई जी के दिखाए रास्ते पर चल जिलाधिकारी बन कर जरूरत मंद लोगों की मदद कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करने लगा।
आज का दिन आनंद के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था।जिस स्कूल की नई बिल्डिंग के उद्घाटन के लिए उसे  मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया था उसी स्कूल में भाई जी आज प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य कर रहे थे ।
स्कूल के उसी प्रांगण में आनंद को मुख्य अतिथि के रूप में देखकर विमल की आँखें खुशी से छलक उठी।
मुख्य अतिथि के रूप में मेरा परिचय देते हुए विमल ने कहा" बच्चों, जिलाधिकारी महोदय इसी स्कूल से पढ़े हैं और आज हमारे गांव का नाम रोशन कर रहे हैं। हमेशा गांव के लोगों की मदद करने में आगे रहते हैं।"

आनंद ने बच्चों को पुरस्कृत करते हुए कहा अपने अभिभाषण में कहा"आज मैं जो कुछ भी हूं अपने भाई जी की बदौलत हूँ। उन्होंने मुझे जीवन के मूल्यों से परिचय कराते हुए सही रास्ते पर बढ़ने का रास्ता बताया था। मैं जब कभी परेशान रहा भाईजी ने हमेशा मेरी मदद की जिसकी वजह से मैं आज आप लोगों के बीच खड़ा हूँ एवं समाज की सेवा करने योग्य बन पाया हूँ।"
"मेरे भाई जी कोई और नहीं बल्कि आपके प्रधानाध्यापक महोदय हैं और आनंद ने आगे बढ़कर भाई जी के पैर छू लिए। भाई जी ने उसे अपने हृदय से लगा लिया।"

आनंद ने भाव विभोर हो आगे कहा" जिंदगी में हमें रोजी रोटी के लिए ,नए मुकाम बनाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है।हमें नये लोगों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है।
इस संबंद्ध में हमें धान के पौधे बहुत अच्छी सीख देते हैं । आपको पता है ना कि धान के पौधों को दो बार लगाया जाता है। एक बार धान के बीज को खेत में डाला जाता है। जब छोटे पौधे बन जाते हैं तो उन्हें वहां से निकाल कर अलग अलग कर दूसरी जगह लगाया जाता है। तभी वह फलते फूलते हैं और खेतों में फसलें लहलहा उठती हैं और हमारा घर आंगन खलिहान भर जाता है।

 आनंद ने आगे कहा "हम सबका विद्यार्थी जीवन  बिल्कुल धान के पौधे की तरह  ही होता हैं । गांव के स्कूल में हम एक साथ पढ़ते हैं और बड़े होकर हमें अपना भविष्य संवारने के लिए अलग होना पड़ता है। अलग-अलग जगहों पर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ती है और अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए समाज की सेवा करनी होती है और तभी हम बड़े होकर अपना योगदान समाज को दे पाते हैं।

जीवन में इस तरह एक दूसरे से मिलकर रहने और परिस्थितियोंके अनुरूप अपने को ढालने की  प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए ताकि सबका सर्वांगीण विकास हो ।धान के पौधे इसका सर्वोत्तम उदाहरण और प्रेरणा स्रोत हैं।

इसलिए कभी भी कोई परेशानी आए तो हमें घबराना नहीं चाहिए बल्कि हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।

आनंद ने बच्चों से कहा "विपरीत परिस्थितियों में जीवन को सकारात्मक नजरिए से देखने की प्रेरणा मुझे मेरे भाई जी से मिली। "

जिनकी वजह से आज मैं आप लोगों के बीच खड़े होकर  बोल पा रहा हूं। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा ।
समारोह के बाद आनंद नेहा एवं रोहन के साथ घर पहुंचा वहां पर सुरेंद्र सिंह बेसब्री से अपने पोते और बेटा बहु का इंतजार कर रहे थे। उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिए झुके बच्चों को उन्होंने आगे बढ़ कर गले लगा लिया। उनकी आंखें खुशी से छलक रही थी ।
तभी हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई। रोहन आनंद के हाथ को पकड़ कर बोला
"चलो पापा कागज की नाव बनाते हैं ।"
इस बारिश में आनंद अकेला नहीं था। उसने भाई जी की भांति रोहन का हाथ थाम लिया था और दोनों हाथों में हाथ डाले उछलते कुदते कागज की नाव बनाने में लग गए ।रोहन के चेहरे पर तेज आभा के साथ मुस्कान बिखर गई।

विमल भाई जी दूर करे मुस्कुरा रहे हैं ।
जीवन के प्रति सकारात्मक सोच नई पीढ़ी में संचारित होता देख उनके चेहरे पर संतुष्टि और खुशी के भाव साफ झलक रहे थे।


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