बेटियों की शिक्षा

 
बेटियों की शिक्षा से जुड़ी जागरूकता फैलाने का मुद्दा हो या समाज में किसी भी तरह के सुधार की आवश्यकता हो ,
मेरी समझ से हमें स्वयं को जागरूक करने की आवश्यकता सबसे ज्यादा है। हम हमेशा दूसरों से बदलाव की उम्मीद करते हैं और स्वयं अपने लिये दोहरा मानदण्ड अपनाते हैं।
हमारे समाज में आज भी अपने आप को शिक्षित सभ्य और प्रगतिशील कहने वाला एक बड़ा तबका बेटो और बेटियों में सतही स्तर पर एक समान अवसर,आजादी,और उड़ने के लिए खुला आसमाँ नहीं दे पाता है।
पढ़ाई के लिए विदेश तो दूर की बात है, छोटे कस्बों तथा गाँव से शहर या फिर छोटे शहर से बड़े शहर भेजने के लिए निर्णय लेते समय सिर्फ बेटियों को ही नहीं बल्कि माँ बाप को भी अपने आप से लड़ना पड़ता है।

और तो और जब कुछ लोग अपने आप से लड़कर जीत जाते हैं, तो उच्च शिक्षा प्राप्त बेटी की शादी के लिए बेटी के पिता को दहेज के लालची बेटे के बाप के इस सवाल का जवाब देना भारी पड़ता है कि " बेटे की पढ़ाई में बहुत खर्च हुआ है आप कम से कम उतना तो दीजियेगा ।"
जैसेकि उसी पढ़ाई के लिए बेटी के पिता को कुछ भी खर्च वहन ना करना पड़ा हो!

इतना ही नहीं बेटी की शादी में तो हम समाज से बदलाव चाहते हैं परंतु बेटे की शादी करते वक़्त दहेज के लालच को बेटे की पढ़ाई पर हुए खर्च और सामाजिक प्रतिष्ठा की आड़ में बेटियों के पिता से वसूलने की अंतर्निहित इक्षा रखते हैं।
इन सबसे बचने के लिए बेटी की शिक्षा के अनुरूप योग्य वर की तलाश में यदि लड़की के माता पिता ने जातीय समीकरण का उल्लंघन किया तो हम दबी जबान में उनकी आलोचना करते हैं ,खुलेमन से समाजिक सर्वग्राह्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।

अतः मेरे विचार से बेटियों की शिक्षा के लिए हमें पहले खुद को जागरूक करना होगा ,सही मायने में अपने आप को बदलना पड़ेगा ताकि समाज में बेटियाँ अपने हौसलों की उड़ान भर सकें।
हाँ ! नीतिगत तौर पर हम इन बेटियों की ऊँची उड़ान की मिसाल बन चुकी प्रेरक कहानियों को स्कूल के पाठ्यक्रम में उचित स्थान देकर बेटियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता के अपने सामाजिक दायित्व के निर्वहन करने का प्रयास कर सकते हैं।




Post a Comment

Previous Post Next Post