बाबूजी के गणेश जी

प्रखर, जूही ,मम्मी पापा ... फटाफट नाश्ते के लिए  आ जाइये ,वरना पूरियां ठंढ़ी हो जाएंगी....प्राची ने सबको आवाज लगाई।

रोज की तरह सुबह सुबह प्राची सभी के लिये नाश्ता तैयार करने में व्यस्त थी। घर में सबकी पसंद  अलग अलग थी। शुगर एवं बी पी के मरीज बुजुर्ग सास ससुर के सेहत का भी ध्यान रखना था। बच्चों के लिए उनकी पसंद की आलू  टमाटर की सब्जी बनाई थी । आलू टमाटर की सब्जी के साथ गरमा गरम पूरी बच्चों को बेहद पसंद है। प्राची ने लौकी का कोफ्ता , करेले की सब्जी और टमाटर की चटनी के साथ मीठी सेवइयां भी बना रखी थी।

प्रखर ने अपने स्कूल बैग को तैयार करते हुए आवाज दी ...अभी आया माँ।

जूही पहले से ही तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर आ चुकी थी और गरमा गरम पूरियों एवं सब्जी की खुशबू उसकी बेसब्री बढ़ा रही थी।

आरती की घंटी बज रही थी। पूजा खत्म कर मम्मी भी  नाश्ते की टेबल पर आ चुकी थीं ।

पापा जी ने आवाज लगाई ....हम सब तैयार हैं बहु...तुम्हारे हाथों का पसंदीदा नाश्ता करने के लिए।

अभी लाई पापा जी... कहते हुए प्राची ने गरमा गरम पूरियां सबकी थाली में लगा दी।

नाश्ते की टेबल पर प्राची के हाथों के स्वदिष्ट गरमा गरम पूरियों की डिमांड बढ़ती जा रही थी।

प्राची फटाफट पूरियां तलती और सबकी थाली में डालती जाती।

बहु अब और मत डालो....मम्मी ने थाली के ऊपर हाथ कर प्राची को रोकते हुए कहा ।

मम्मी बस एक और ले लीजिए प्राची ने एक और पूरी मम्मी की थाली में डालते हुए कहा।

आज तो नाश्ते की जितनी तारीफ की जाए कम है।अब तुम भी नाश्ता कर लो ...अनिल ने प्राची की तारीफ करते हुए कहा।

रोज की तरह सबको नाश्ता करा कर प्राची ने खुद भी जल्दी जल्दी नाश्ता किया और ऑफिस के लिए तैयार होने लगी। उसने अपना और अनिल का टिफिन पैक किया तब तक अनिल ने कार निकल ली थी।

बाय मम्मी ,बाय पापा जी। दोपहर में खाने के बाद समय से दवा ले लीजियेगा....कहते हुए प्राची अनिल के साथ ऑफिस के लिए निकल पड़ी।

पिछले दस सालों से ये प्राची की रोज सुबह की दिनचर्या थी। प्रखर अब बड़ा हो रहा था।वो महसूस कर रहा था कि प्राची सबके लिए तो सबकी पसंद का नाश्ता बनाती है पर अपने लिए कुछ भी नहीं करती।अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती। सबके खिलाने के बाद जो कुछ बच जाता है उसी को प्रेम से खाती है ,कभी कोई शिकायत नहीं करती।

अगले दिन भी प्राची ने रोज की तरह नाश्ता बनाया और नाश्ता करने के लिये सबको आवाज लगाई।

आज नाश्ते में गरमा गरम पूरी के साथ छोले की सब्जी थी। जैसे ही प्राची ने गरम गरम पूरियां प्रखर की थाली में डालकर किचन में वापस जाने के लिये मुड़ी प्रखर ने प्राची का हाथ पीछे से पकड़ते हुए कहा...... रुको मम्मी....जरा अपना मुँह खोलना...….कहते हुए प्रखर ने गरमा गरम पूरियों का एक कौर प्राची के मुँह में डाल दिया।

मम्मी आप सबको खिलाती हो। खुद सबसे बाद में खाती हो।आज आप टेस्ट कर के बताओ "आपने छोले कैसे बनाये है।"

प्राची जितनी बार पूरियां देने जाती हर बार प्रखर उसके मुँह में एक कौर डाल देता।

शादी के बाद उसे इस तरह ससुराल में किसी ने पहली बार खिलाया था। प्रखर के इस तरह के व्यवहार से प्राची की आँखों में आँसू आ गए
और वह बचपन की यादों में तेजी से उतरती चली गई।

जब प्राची दसवीं कक्षा में थी तो उसकी माँ का यूटेरस का ऑपरेशन हुआ था। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी। अतः प्राची पूरे मन से अपनी माँ की सेवा करने में लगी गई थी।

इससे पहले माँ ने प्राची से कभी घर का कोई काम नहीं करवाया था। हमेशा कहती थी कि तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो काम तो पूरी उम्र करनी है।

माँ की बीमारी की वजह से सुबह नाश्ते की जिम्मेदारी प्राची ने स्वयं संभाल ली थी।दोपहरऔर रात के खाने की जिम्मेदारी दीदी ने अपने ऊपर ले ली थी। किचन के दरवाजे के सामने खाने की टेबल रखी हुई थी।

प्राची रोज सुबह नाश्ते की टेबल पर छोटे भाई आकाश और दीदी के साथ बाबूजी की प्लेट लगाती। बाबूजी खाने से पहले अन्नपूर्णा की पूजा करते और पहला कौर अग्रासन निकलते थे, फिर अंजुली में जल लेकर थाली के चारों तरफ घुमाते और अन्नपूर्णा को प्रणाम करके ही खाना खाते थे।

प्राची जैसे ही पराठे लेकर बाबूजी की थाली में डालने के लिए पहुँचती बाबूजी उसका हाथ पकड़ कर कहते...…रुक ..रुक..इधर आ ...जल्दी से आ कर और पहला निवाला प्राची के मुँह में डाल देते।

प्राची जितनी बार उन्हें पराठे सर्व करती उतनी बार एक दो कौर बाबूजी उसके मुँह में डाल देते।

एक कौर खिलाने के बाद जैसे ही प्राची किचन की तरफ जाने लगती बाबूजी बड़े प्यार से फिर से हाथ पकड़ लेते और कहते..…अरे!रुक जा एक कौर और ले ले फिर जा।

प्राची कहती ..तवा पर पराठे डाल कर आई हूँ...जल जाएगा...परन्तु बाबूजी बिना खिलाये कहाँ मानने वाले थे।

प्राची बाबूजी से कहती.….क्या मैं आपकी "गणेशजी" हूँ जो आप पहला भोग मुझे लगाते हैं?

बाबूजी कहते ....अरे! नहीं बेटा, मेरी छोटी सी गुड़िया भूखी रहे और मैं पहले खा लूं ! ये नहीं हो सकता।

प्राची...तू तो मेरे दिल का टुकड़ा है , मेरी लाडली है।

फिर बाबूजी के लिए प्राची उनकी गणेश जी ही बन गई।

माँ के ठीक हो जाने के बाद भी जब भी खाने की टेबल सजती प्राची बाबूजी के हाथ से पहला कौर खाती।

शादी के बाद भी जब भी प्राची मायके गई अपने बाबूजी की "गनेश जी" बनी रही और अपनी थाली के पहले कौर का भोग बाबूजी  अपने हाथों से प्राची को लगाते रहे।

कुछ समय बाद बाबूजी की सेहत बिगड़ने लगी और बाबूजी सयंमित और संतुलित भोजन करने लगे।

तब भी जब प्राची उनसे मिलने मायके गई और उनके बिस्तर के पास ही टेबल पर उनके लिए थाली सजाई ,बाबूजी ने प्राची का हाथ पकड़ लिया और बोले " मेरे गणेशजी भोग लगाए बिना कहाँ जा रहे हैं?

फटाफट अपना मुँह खोल..…..और अपनी थाली की दो रोटी और उबले हुए मटन के दो पीस में से एक प्राची के मुँह में डाल दिया....तुम्हारा फेवरेट पीस...मेरी "गणेशजी।"

प्राची ने कहा ...आप क्या खायेंगे? कुछ बचा ही नहीं....मैं और लेकर आती हूँ।

उन्होंने प्राची का हाथ पकड़ लिया .....नहीं बेटा अब खाया नही जाता है, इतना ही खा लूँ यो बहुत है। बस तू पास बैठ।

कुछ दिनों बाद बाबूजी नहीं रहे। जब कभी प्राची मैके जाती उसके पसंद के वयंजन बनाए जाते।परंतु प्राची सूनी आँखों से खाने की टेबल पर बाबूजी के "गणेशजी" को ढूंढा करती जो उसे फिर  कभी नहीं मिल पाए।

आज जब प्रखर ने प्राची का हाथ पकड़ कर कहा माँ रुको...यहाँ आओ...अपनी आँखें बंद करो ...और अब मुँह खोलो....इसके साथ ही प्रखर ने अपनी थाली का पहला कौर प्राची के मुँह में डाल दिया।

प्राची को बाबूजी के "गणेशजी" से जुड़ी यादें याद आ रही थीं। प्राची की आँखों से अश्रु धारा बह निकले। प्राची सबसे आंसूओ को छुपाकर किचन में सबके लिए पूरियां तलने में लग गई।


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