मेरी तन्हाई


तुमने सोंचा अलग होकर मुझसे
तुम मेरी जिंदगी वीरान कर दोगे!
तुम्हें खबर ही नहीं कि तुम
अपने ख्यालों से मुझे आबाद कर दोगे।

तुम और तुम्हारा ख्याल हमें छोड़ते कहाँ हैं ?
अकेले होकर भी हम तन्हा होते कहाँ हैं ?

तन्हाई कोई वो पल नहीं जब एक इंसान अकेला होता है।
तन्हाई तो वो आलम है जब कोई भरी महफ़िल में तन्हा होता है।

तन्हाई कोई अलगाव नहीं जिसमे बिछड़ना होता है।
तन्हाई तो वो मंजर है जहाँ प्रतिपल मिलना होता है।

तन्हाई वो पल नहीं जब चहुँ ओर सन्नाटा होता है ।
तन्हाई तो वो मंजर है जहाँ यादों का मिलना होता है।

तन्हाई वो आलम नहीं जब दिल में वीराना होता है।
तन्हाई तो वो मौसम है जब फूलों में खुमार होता है।

सूनी आंखें भरी महफिल में तुम्हें ढूंढती,
दिल में एक दर्द सा महसूस होता।

तुम्हें शायद मेरी जरूरत नहीं थी ,
पर मुझे तो तुम्हारी आदत हो गई थी ।

सब कुछ था रुपया पैसा साजों सामान,
पर मेरी तन्हाईयों में मैं अकेली खड़ी थी।

तुम्हारे बिन मन बेचैन रहता,
तुम थे मेरी तन्हाईयों में ,मेरी सांसों में ,
आंखें बंद हो तो ख्वाबों में और
आंखें खुली हो तो खयालों में ,
तुम थे भी और तुम नहीं भी थे ,
क्या कभी मेरे ख्यालों से अलग हो पाओगे?

तन्हा करना ही है मुझे तो
अपने साथ इन खयालों को भी
ले जाओ -ले जाओ- ले जाओ !
तभी तो तुम मुझे तन्हा कर पाओगे।
तभी तो तुम मुझे तन्हा कर पाओगे।
तभी तो तुम मुझे तन्हा कर पाओगे।


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