फूलों का घर

वो गाँव का अपना प्यारा सा घर और पूरे गाँव में उसकी अलग सी अपनी पहचान ! जब कभी कोई डाक बाबू का घर ढूंढता हुआ गाँव की सीमा में प्रवेश करता तो उस घर का परिचय इतना काफी था कि सीधे चले जाइये जो भी फूलों वाला घर दिखाई दे समझ लेना वही डाक बाबू का घर है।

जहाँ गाँव में लोग सब्जियों,फलों और अनाज को उगाकर अपनी प्राथमिक जरूरतों को पूरा करने में ही अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं वहाँ पर पूरे गाँव के लिए  रंग बिरंगे फूलों से सजा वो खूबसूरत सा घर किसी पार्क से कम नहीं था।

होता भी क्यों नहीं फूलों और प्रकृति से नेहा का विशेष लगाव जो था । सुबह उठकर जब तक वो अपनी फूलों की दुनियाँ में घूमकर ,उन्हें छूकर उनकी हर जरूरत का ध्यान रखते हुए जब तक उनसे घंटों बातें ना कर ले उसे चैन नहीं आता था।
उन्हें सहलाती प्यार से सींचती और उन्हीं में खो जाती। नेहा का प्यार पा फूल भी खिल उठते और भीनी भीनी खुशबू फैलाकर झूम झूमकर उसका धन्यवाद करना नहीं भूलते ।

एक दिन शाम को नेहा अपने फूलों से बातें कर रही थी कि उसके कानों में उसके पिता की खनकती हुई आवाज सुनाई पड़ी " तूने तो पूरे गाँव में डाकबाबू का नाम रौशन कर दिया ,तेरा चुनाव शहर एक बड़ी कंपनी में चीफ इंजीनियर के पद पर हो गया है" कहते हुए उन्होंने उसे प्यारसे गले लगा लिया। अब हमें अपनी दिल के टुकड़े से अलग रहना पड़ेगा । तुझे शहर जाना पड़ेगा। मुझे यकीन है कि तू अपनी जमीन से जुड़े रहकर  हमारे खानदान का नाम रौशन करेगी।

अब नेहा शहर आ अपने काम में मशगूल हो गई। परन्तु उसे फूलों की याद सताने लगती और वो उदास हो जाती। जैसे ही उसे अपने पिता की बातें याद आती वो फिर से  काम में लग जाती। अब वो काफी ऊंचे पोस्ट पर पहुँच चुकी थी। उसके नाम से अब उसके पिता की पहचान होने लगी थी।
पर नेहा आज भी फूलों को देखकर सोंचती  आखिर खो गए कहाँ हम!

पूनम एक प्रेरणा


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