मुखौटा पार्ट 3

   



उच्च प्रबंधन का भारतीय मैरिज का उदाहरण देना स्पष्ट संकेत दे रहा था कि विलय के बाद अपना अस्तित्व खो चुके बैंकों के स्टाफ सदस्यों को भेद भाव,पक्षपातपूर्ण एवं खुद को बार बार साबित करने वाले चुनौती पूर्ण एव कठिन दौर से गुजरना होगा।

खैर! बैंको का विलय कर बड़े बैंक बनाने का निर्णय सरकार का नीतिगत फैसला था । अतः सभी शाखाओं में तीनों बैंको के स्टॉफ सदस्यों की पोस्टिंग कर सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने एवं सभी बैंकों के ग्राहकों को नई एकीकृत इकाई में बेहतर ग्राहक सेवा प्रदान करने की दिशा में काम शुरू किया गया।

टेक्नोलॉजी के उपयोग से डेटा एकीकृत कर  सभी   स्टॉफ सदस्यों को नई टेक्नोलॉजी के प्रयोग से अवगत होने के लिए सपोर्ट सिस्टम बनाया गया।

बाहर से सब कुछ सामान्य था। सभी एक दुसरे की मदद करते नजर आ रहे थे। सब कुछ शांत एवं खुशनुमा वातावरण में हो रहा था।

नियंत्रण कार्यालयों में जहाँ पर विलीन हो चुके बैंको के पदाधिकारी शीर्षथ पदों पर आसीन थे उस क्षेत्र में कार्यरत विलय हो चुके बैंक के स्टॉफ सदस्यों के प्रति बड़े बैंकों के स्टॉफ सदस्यों का व्यवहार बड़ा ही शालीन था।

फील गुड का कार्यकारी माहौल था ।कभी कभार कोई परेशानी होती भी तो उसका उचित निराकरण किया जाता था।

समय अपनी तेज चाल से चलता रहा और  उसी नियंत्रण कार्यालय में प्रोमोशन एवं ट्रांसफर के बाद भारतीय जन बैंक 1 के पदाधिकारी ने बॉस बनकर  कार्य भार संभाला ।

नियंत्रण कार्यालय में कार्यरत अन्य स्टाफ सदस्यों का शाखाओं में कार्यरत विलय हो चुके बैंक के स्टॉफ सदस्यों से बात करने का ढर्रा बदल चुका था।

भारतीय जन बैंक 1 के जूनियर स्टॉफ भी विलय हो चुके बैंकों के सीनियर स्टाफ सदस्यों के साथ गाली गलौज,दुत्कारा एवं उनके आत्म सम्मान और स्वाभिमान को चोट पहुंचाने वाली भाषा शैली का प्रयोग करने लगे।

नियंत्रण ऑफिस में कार्यरत जो व्यक्ति पहले शाखा को फोन करते ही प्रणाम मैडम या प्रणाम सर कहने के बाद ही फॉलोअप के लिए आगे बातचीत शुरू करता था,

उसी शख्स का लहजा अब पूरी तरह बदल चुका था। फोन करने के साथ ही वह चिल्लाना, डाँटना और गाली देना शुरू कर देता।

कभी कहता सीनियर मैनेजर हो तुम्हें लाज नहीं आती। कभी कहता अब पहले वाला वक़्त बदल चुका है

जोर जोर से डाँटकर बात करता, तुम्हारे यहाँ से ये डेटा नहीं आया,वो नहीं आया।
मुफ्त की सैलरी लेते हो, तुम्हें सैलरी लेने का कोई अधिकार नहीं है।

अब समझ में आ रहा था सबने अच्छा बनने का ढोंग किया था। सभी ने अपने चेहरे पर सौहाद्र्रपूर्ण व्यवहार करने वाले व्यक्तित्व का मुखौटा लगा रखा था।

नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही सभी ने गिरगिट की भांति अपना रंग बदलना शुरू कर दिया था । ऐसा लग रहा था कि सभी ने अपने गुस्से भरे लाल रंग के ऊपर हरी भरी  खुशहाली का हरा रंग पोत रखा था।

सभी ने असली चेहरे के ऊपर नकली हमदर्दी भरे चेहरे का मुखौटा लगा रखा था।

बरसात की पहली शुरुआत के साथ ही लोगों के चेहरे से रंग उतरने लगे थे एवं असली चेहरे मुखौटों के पीछे से झाँकने लगे थे।


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