प्यार की परिभाषा



प्यार एक पवित्र एवं पावन अनुभूति है। प्यार का अर्थ है ईश्वर की पूजा करना। प्यार एक खूबसूरत एहसास है जो पाना नहीं देना जानता है। प्यार में डूबा हृदय जोड़ना चाहता है तोड़ना नहीं।
प्यार एक रूहानी पवित्र अनुभूति है जो अपने प्रियतम
को समाज में रुसवा नहीं होने देती बल्कि उसे प्रतिष्ठित करती है।
🌷जैसे राधा कृष्ण का प्यार🌷
राधा जी शादीशुदा थीं।परन्तु कृष्ण के लिए उनका प्रेम पूजा की तरह पवित्र था।उनका प्यार जिस्मानी नहीं रूहानी था। जब भी श्री कृष्ण की मुरली की तान सुनती राधा जी दीवानी हो जाती थी।अपना सुध बुध खोकर दौड़ पड़ती थीं । जिसके लिए उन्हें अपनी सास से डाट भी खानी पड़ती थी।
श्री कृष्ण चाहते तो वे राधा जी से शादी कर सकते थे।परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अगर वे ऐसा करते तो राधा जी की बदनामी होती।श्री कृष्ण को ये कहाँ मंजूर था कि उनका प्यार बदनाम होकर समाज में दुत्कारा जाए।
इसलिए श्री कृष्ण राधा जी की जिंदगी से दूर चले गए और अपने प्यार को समाज में बदनाम नहीं होने दिया।
दोनों ही के दिल में प्यार की ज्योत जलती रही और मन से एक होने के कारण राधा कृष्ण की रासलीला निरंतर चलती रही।जिधर देखो उधर रासधाम में राधा कृष्ण और कृष्ण राधा मय हो गए। दोनों कभी नहीं मिले मगर अलग होकर भी कभी एक दूसरे से अलग नहीं हुए। इसलिए राधा कृष्ण का जन्म जन्मांतर का प्यार युगों युगों तक प्रतिष्ठित एवं पूजनीय है।
परंतु आज के संदर्भ में प्यार की परिभाषा बदल गई है।प्यार एक दूसरे को पाना चाहता है।प्रेमी युगल भागकर समाज में माँ बाप की प्रतिष्ठा को धूमिल करते है और नहीं मिलने पर हत्या जैसी गिरे हुए कृत्य से भी पीछे नहीं हटते है।ये प्यार नहीं सिर्फ वासना हो सकता है क्योंकि प्यार तो पूजा की तरह पवित्र होता है।

जय श्री राधे कृष्ण🙏💐


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