मुखौटा

राष्ट्रीय बैंकों का विलय कर बड़े बैंक बनाने का निर्णय सरकार का था। इसमें ना तो विलय होने वाले और ना ही जिस बैंक में अन्य दूसरे बैंकों का विलय हुआ उनके स्टाफ सदस्यों की मर्जी कोई मायने रखती थी। सरकार द्वारा लिया गया यह एक नीतिगत फैसला था जो सभी बैंकों पर बाध्यकारी था। विलय करने वाले बैंक के स्टाफ सदस्यों में यह डर था कि उनकी सीनियरिटी लूज हो जाएगी जबकि विलय होने वाले बैंक के स्टाफ सदस्यों में यह डर था कि उनके साथ रिफ्यूजी जैसा किया जायेगा यानि उन्हें दूसरे दर्जे की नागरिकता प्राप्त होगी एवं उनके साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जायेगा।
इस डर को दूर करने के लिए जगह जगह पर तीनों बैंको के उच्च प्रबंधन वर्ग, स्टाफ सदस्यों और ग्राहकों के बीच टाउन हॉल मीटिंग की गई और बैंक स्टाफ सदस्यों को आपस में मेलजोल बढ़ाने का अवसर प्रदान करते हुए प्रबंधन द्वारा ये आश्वासन दिया गया कि यह बैंकों को मर्जर नहीं, बैंको का विलय है...अतः किसी भी स्टाफ को डरने की कोई जरूरत नहीं है...किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा...किसी का कोई नुकसान नहीं होगा...तीनों बैंकों मेँ जो बेहतर सुविधा होगी वो सभी स्टाफ को प्रदान किया जाएगा....ग्राहकों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा जायेगा...उन्हें किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होगी।
विलय कर्ता बैंक के प्रबंधन द्वारा इस विलय की तुलना भारतीय वैवाहिक पद्धति से करते हुए सभी स्टॉफ सदस्यों एवं ग्राहकों को बिना किसी भेदभाव के व्यापक सहृदयता के साथ खुले मन से सर्वग्राह्यता का आश्वासन दिया गया।

विलय होने वाले बैंको के स्टॉफ सदस्यों को खुला मंच प्रदान करते हुए मन में उठने वाली किसी भी तरह की आशंका को व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया गया।

तभी विलय होने वाले बैंक की किसी महिला स्टॉफ सदस्य की शांत किन्तु प्रभावशाली अंदाज में प्रबंधन से पूछे गए एक शंकायुक्त प्रश्न से खचा खच भरा टाउन हॉल गूँज उठा।

सर, अभी अभी आपने इस विलय की तुलना इंडियन मैरिज से की है। इंडियन मैरेज में एक लड़की शादी के बाद अपना सबकुछ छोड़ कर ससुराल जाती है। मायके का प्यार दुलार छोड़ ससुराल के रीति रिवाजों को अपनाने की कोशिश करती है। नए जगह, नए माहौल में ढलने की कोशिश करती है।सबकी सुविधाओं का ध्यान रखती है। सबकी पसंद का खाना बनाती है।सभी को गरमा गरम रोटियां खिलाती है।और सब के खाने के बाद उसके हिस्से में आती हैं सबको खाना खिलाने के बाद ठंडी रोटियां।

तो मेरा विलय होने वाले बैंक के सभी स्टॉफ सदस्यों की तरफ से आपसे एक सवाल है कि  *क्या हमें भी गरम रोटियां खाने को मिलेंगी या हमारे हिस्से आयेंगी सिर्फ ठंडी रोटियाँ?*

क्या हमारे साथ ट्रांसफर, प्रोमोशन एवं कार्य कारी वातावरण प्रदान करने में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा?

एक महिला कर्मचारी के कंधे पर अपने काम के साथ साथ पारिवारिक दायित्व के निर्वहन की भी जिम्मेदारी होती है। तो क्या एक स्टेट में दस साल तक काम करने के नाम पर उनका ट्रांसफर गोरखपुर से गुजरात या चेन्नई कर के इसे बैंक की ट्रांसफर पॉलिसी का नाम तो नहीं दिया जाएगा?

विलय करता बैंक के उच्च प्रबंधन बर्ग ने इन शंकाओं के जवाब में कहा-

मैडम ,मैंने इस विलय की तुलना इंडियन मैरेज से की है। हमारे यहाँ एक लड़की अपना सब कुछ छोड़कर ससुराल जाती है,वहाँ के तौर तरीके अपनाती है, सास ननद के ताने सहती है।परन्तु एक दिन ऐसा आता है कि पूरे घर मे उसी की चलती है।

फिर भी मैं आश्वासन देता हूँ कि सभी का सामान रूप से ख्याल रखा जाएगा। किसी के साथ कोई भेद भाव नहीं किया जायेगा ।

उन्होंने सभी से खुलेमन से एक दूसरे को अपनाने एवं सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने का आह्वान किया।


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