प्यार एक एहसास....एक सुखद अनुभूति..…जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। प्यार तो वो पवित्र भावना है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।प्यार की कोई निश्चित रुप रेखा नहीं होती ,कहीं कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती।इसका क्षेत्र काफी व्यापक और विस्तृत है तथा सीमाओं से परे है।
प्यार ईश्वर का दिया हुआ वो वरदान है जिसमें डूबा हृदय चिर शान्ति, अपार निश्चिंतता ,अधरों पर मंद मुस्कान ,उल्लास एवं समर्पण तथा संरक्षण की सुखद अनुभूति करता है।पवित्र प्यार ईश्वर को प्राप्त करने का एक पावन साधन है।जिस दिल में प्यार होता है वहाँ नफ़रत के लिए कोई जगह नहीं होती है ओर शायद इसलिए प्यार की उपमा पूजा से की जाती है।
प्यार के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं कि जा सकती है।
इंसान जब इस दुनिया में आता है तो माँ के सीने से लगकर प्यार की पहली अनुभूति को प्राप्त करता है। ममतामयी माँ के स्पर्श से उसका जीवन के पहले प्यार भरे अनुभूति से साकक्षात्कार होता है।
पिता का प्यार उसे जीवन की कठिनाईयों से संघर्ष कर विजयी होने की योग्यता एवं अनुभूति देता है।
फिर भाई बहनों का प्यार एक दूसरे के लिये त्याग एवं प्यार की अनुभूति कराता है।
जीवन चक्र में आगे के पथ पर जीवन साथी का प्यार हृदय में लाल गुलाब सा बसता है और संसार के नव सृजन की अनुभूति कराता है।
गृहस्थी में आगे अपने काम से, कर्तव्य से प्यार होता है जिसकी अनुभूति जीवन को सुगम बनाती है।
फिर व्यक्ति माँ बाप बनकर अपनी संतान से प्यार करता है।
बचपन अपने दोस्तों से प्यार की अनुभूति कराता है।
फिर एक शिष्य के रूप में अपने शिक्षक से मिले प्यार और स्नेह की अनुभूति होती है।
बड़े होने पर उसे अपने रूतबे से मोहब्बत का एहसास होता है और तब इंसान अपने को सर्वशक्तिमान समझने की गलत अनुभूति करता है।
वक़्त का पहिया चलता रहता है और अंत समय में ईश्वर की भक्ति, आराधना, सन्मार्ग मोक्ष एवं प्रभु के श्री चरणों में समर्पित जीवन अपने आराध्य ईष्ट से प्यार की अनुभूति करता है और भक्ति मार्ग पर चलकर प्रेममय हो प्रभु में लीन विलीन हो जाता है।
इसलिए प्यार एक निरंतर और शाश्वत प्रक्रिया है जो एक विशेष समय पर नहीं अपितु जीवन चक्र के इस पार और उस पार प्रतिपल,प्रतिक्षण अनुभूत होता है।💐🙏