भोलापन

आनंद आज बहुत खुश लग रहा था। उसकी तरक्की जो हो गई थी। बचपन से ही वह अमीर बनना चाहता था। आज अपनी कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर बन कर उसने अपनी जिंदगी का मुकाम हासिल कर लिया था। उसके लिए उसने मेहनत भी खूब की थी । अपनी इस खुशी को वह अपनों के संग बांटना चाहता था।

" मोना जल्दी से तैयार हो जाओ, आज हम बाहर घूमने जाएंगे और बाहर ही खाना भी खाएंगे "
आनंद ने अपनी पत्नी रोमा को आवाज लगाते हुए कहा।

"अरे वाह! रोजी भी बहुत दिनों से पार्क जाने के लिए कह रही थी, बहुत खुश हो जाएगी। हम दोनों अभी तैयार हो जाते हैं।" मोना ने कहा ।

रोजी पाँच साल की बहुत ही प्यारी बच्ची थी और अपने चुलबुले पन से सबका मन मोह लेती थी। आनंद और मोना अपनी बिटिया पर जान छिड़कते थे। उसकी तोतली जबान में भोली भाली बातें सब को बहुत प्यारी लगती थी।

" पापा आज मैं आगे बैठूंगी ।आप हमेशा मुझे मम्मी की गोद में बिठा देते हैं।आज तो मैं ही आपकी बगल की सीट पर बैठूंगी। मम्मी कार में पीछे बैठेगी।" रोज ने कहा।

 "बिल्कुल बैठेगी मेरी गुड़िया रानी, पर अभी नहीं जब बड़ी हो जाएगी तब।" ऐसा कह कर आनंद ने रोजी को अपनी बांहों में उठाया और मोना की गोद में बिठा दिया।
 
"और तुम्हारी मम्मी तुम्हारे बिना कैसे रहेगी? उसका तो मन भी नहीं लगेगा। क्या तुम अपनी मम्मी को उदास देखना चाहती हो"आनंद ने कहा।

रोजी मोना बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी। वह अपनी जिद भूल प्यार से मोना की गोद में बैठ गई। मोना ने प्यार से रोजी का माथा चूम लिया।

 तीनों पार्क पहुंच गए। वहां झील में बोटिंग का आनंद उठाया। रोजी कभी इस झूले पर झूलते कभी उस झूले पर। कुछ बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे। कुछ अपनी मम्मी-पापा के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे। पार्क का दृश्य बड़ा ही मनोहारी लग रहा था।
चारों तरफ क्यारियों में खिले रंग बिरंगे फूल सबका मन मोह रहे थे। उन फूलों पर मंडराती तितलियाँ  शाम के समय पार्क के दृश्य को और मनोहारी बना रही थी। लाल पीली नीली हरी रंग बिरंगी तितलियों को देखकर रोजी उन्हें छूने की कोशिश में इधर से उधर भाग रही थी। जब कोई तितली बड़े से गुलाब के फूल पर बैठ जाती तो रोजी भी ठहर कर उसे एकटक निहारती,पर जैसे ही वह उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाती,तितली उड़ कर दूसरे फूल पर जा बैठती।

आनंद और मोना भी बैठकर रोजी के इस खेल का आनंद ले रहे थे। रोजी का इस तरह तितलियों के पीछे भागना उन्हें प्रफुल्लित कर रहा था।

तभी अचानक सभी लोग पार्क में से भागने लगे। मोना ने पूछा "आप लोग क्यों भाग रहे हैं?"

भागते हुए किसी सज्जन ने जवाब दिया "बच्चे बैडमिंटन खेल रहे थे कि किसी का कॉर्क पीछे पेड़ पर लगे बिड़नी के छत्ते पर लग गया ।अब बिरनी चारों तरफ उड़ रही हैं ।अगर काट लेगी तो हाथ मुँह फूल जाएगा और बड़ा दर्द होगा।इसलिए आप भी फटाफट भागिये।"

इस भाग दौर में उन्हें रोजी नजर नहीं आ रही थी। तितलियों के पीछे वह दूर तक पहुंच गई थी। मोना ने  रोजी को आवाज लगाई " रोजी जल्दी आओ नहीं तो बिड़नी काट लेगी।"

रोजी ने कहा "मम्मी देखो ना पीले गुलाब पर बैठी ये गुलाबी तितली कितनी प्यारी लग रही है। मैं तो अभी उसके साथ और खेलूंगी और मैंने थोड़े ना  उन बिड़नियों को मारा है जो वे मुझे काट लेंगी! मैं क्यों भागू ? मैं तो अभी तितलियों के संग खेलूंगी।"

 आनंद यह सब सुन रहा था। जब रोजी अपने फूलों और तितलियों की सुनहरी दुनिया छोड़ कर वापस नहीं आ रही थी तो उसने मोना को कहा 
 "मोना तुम जल्दी से कार में जाकर बैठो। मैं रोजी को लेकर आता हूं।"
 और आनंद तेजी से रोजी की तरफ दौड़ पड़ा। उसने कोट से अपना मुंह छुपा लिया था क्योंकि तब तक बिड़नी पार्क में चारों तरफ फैल चुकी थी।
 
आनंद जब तक रोजी को अपनी कोट में छुपा पाता तब तक कई बिड़नियों ने रोजी के हाथ में डंक मार दिया था ।रोजी डंक के असर से दर्द से छटपटा ने लगी। आनंद जैसे तैसे उसे वहां से गोद में उठाकर अपनी कार की तरफ भागा। तब तक रोजी बेहोश हो चुकी थी।

आनंद रोजी की हालत देखकर परेशान था और तुरंत डॉक्टर के पास लेकर गया। डॉक्टर ने दवाइयां दी और आराम करने को कहा। रोजी की हालत देखकर मोना का रो रो कर बुरा हाल था।

 घर पहुंच कर रोजी को बिस्तर पर लिटाया और दोनों उसके पास ही बिस्तर पर बैठ गये। जब दवा का असर हुआ तो रोजी को होश आया, परंतु होश में आते ही वह जलन और दर्द से बेचैन हो उठती।उसका दाहिना हाथ फुल कर डबल साइज का हो गया था और उस पर मटर के दाने के बराबर बिड़नियों के काटे का निशान उभर आया था।
 
आनंद और रोमा उसे प्यार से समझाते , उसका सिर सहलाते  कि बेटा जल्दी ठीक हो जाओगी। पर रोजी का दर्द मोटे-मोटे आंसू बनकर आंखों से उतर कर उसके कोमल गालों पर टपक रहा था। 

उसने आनंद से पूछा "पापा आपने तो कहा था कि जो गलती करता है सजा उसी को मिलती है। मैंने तो कोई गलती किया ही नहीं था। मैंने थोड़े ना बिड़नी के छत्ते को कॉर्क मारा था ,मैंने थोड़े ही ना उनका  छत्ता (घर) उजड़ा था ,जो वे मुझे काटती? मैं मुझे यही सोचकर तितलियों के साथ खेल रही थी और मम्मी के बुलाने पर भी नहीं आई थी कि
 
"मैंने बिड़नियों को थोड़े ही ना मारा है जो वे मुझे काटेगी, वे तो उसे काटेगी जिसने उनका छत्ता तोड़ा था। जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मैं क्यो भागूँ? बिड़नियों ने मुझे क्यों काटा पापा? "
 
आनंद ने रोजी को अपने सीने से लगा लिया और बोला
 " बेटा, तुझे अब कैसे समझाऊं कि दुनिया इतनी सीधी सादी नहीं है ।तुम्हारा  भोलापन आभी यह नहीं समझ पाएगा कि बिड़नी को क्या पता कि उसका छत्ता किसने तोड़ा ? उसके सामने जो भी आएगा वह तो उसको ही कटेगा। इस दुनिया में कई बेगुनाहों को दर्द से गुजरना पड़ता है।उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है जो उन्होंने किया ही नहीं होता है।"
 
परन्तु बच्चे तो मन के सच्चे होते हैं। रोजी का बचपना, उसका भोलापन यह सब भला अभी कैसे समझ पाता?

पूनम एक प्रेरणा
21.04.2022

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