रोमांचक ड्राइविंग



ऊँचे ऊँचे पहाड़ों की गोद में दूर दूर तक फैली हुई हरी भरी वादियों के बीच से बलखाती, इठलाती और मचलती हुई नदी का कल कल बहता पानी ,उसमें तैरती रंग बिरंगी बोट और सर सर बहती हवा में घुली रजनीगंधा की भीनी भीनी खुशबू फ़िजा को मदमस्त बना रही थी। 

इशिका ने कबीर का हाथ पकड़ते हुए कहा

 " देखो ना कितना ही मनोहारी दृश्य है। थोड़ी देर यहाँ रुकते हैं ,तुम भी थोड़ा आराम कर लो फिर फ्रेश होकर चलते हैं। वैसे भी तुम सुबह से ड्राइविंग कर रहे हो ,थक गए होगे। घर पहुँचने में अभी दो तीन घंटे और लगेंगे। "

जैसे ही इशिका ने कबीर का हाथ पकड़ा तेज गति से चलती हुई कार पर उसका संतुलन बिगड़ गया और कार तेजी से  झटके के साथ सड़क से उतर गई।

पीछे की सीट पर बैठी, गोद में अपने पोते मिहिर को सुलाए हुए वंदनी अचानक इस झटके से घबरा गई।

"कबीर, इशिका तुम दोनों ठीक तो हो ना।तुम्हें कोई चोट तो नहीं आई है।" वंदनी ने चिंतित और भर्राए आवाज में पूछा।

"हम दोनों ठीक हैं मम्मी ,आप इतना परेशान मत होइए " इशिका ने कहा।

"तुम लोगों को कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी। कितनी बार समझाया है कि गाड़ी सावधानी से चलाया करो। परन्तु तुम लोगों को मेरी बातें समझ में क्यों नहीं आती हैं । अभी कार नदी में गिर जाती तो क्या होता।" वंदनी बोले जा रही थी।

"माँ हम लोग बिल्कुल ठीक हैं। आप बेकार परेशान हो रही हैं। इधर देखिए, हम सब बिल्कुल ठीक हैं।" कबीर ने वंदनी को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपनी तरफ उसके चेहरे को उठा कर प्यार से समझाते हुए कहा। 

 वंदनी नदी के पास कार के अचानक इस तरह से रुक जाने से अतीत की गहराइयों में उतरती चली गई।  

बात उन दिनों की है जब वंदनी की पोस्टिंग एक सुदूर ग्रामीण इलाके में हुई थी। वह इलाका शहर से रेलमार्ग से नहीं जुड़ा था। सड़क मार्ग भी ऐसा कि  पूछो मत। नदी किनारे बांध पर बनी नदी के घुमाव के साथ घुमावदार , तीखे अँधे मोड़ वाली सड़क।आये दिन कोई ना कोई दुर्घटना होती रहती जो दिल को दहला जाती।

वहाँ जाने के लिये शहर से सुबह पाँच बजे एक बस चलती थी और शाम को वापस आने के लिये तीन बजे आखिरी बस थी। गाँव में स्कूल ढंग के नहीं थे। अतः वंदनी को अपने बच्चों को शहर में ही रखना पड़ा था। काम कुछ ऐसा था कि सुबह बच्चों को स्कूल भेजकर वापसी में तीन बजे की बस पकड़ना संभव नहीं था।

ऐसे में एकमात्र विकल्प था अपनी निजी सवारी। उसने ईश्वर का नाम लिया और चल पड़ी एक रोमांचक सफर पर वंदनी और उसकी कार।

एक दिन शाम को 6 बजे जब वह ऑफिस से लौट रही थी कि एक किलोमीटर दूर तक सड़क जाम थी। लगभग एक घंटे तक जाम खुलने का इंतजार करने के बाद भी जब जाम नहीं खुला तो वंदनी ने आसपास के ग्रामीणों से पूछा कि क्या शहर जाने का कोई और भी रास्ता है?

दो तीन लोगों ने कहा थोड़ा पीछे से एक रास्ता दाहिनी तरफ मुड़ता है वो शहर निकल जायेगा।

घर पहुँचने की जल्दी ,शाम का समय और बारिश का मौसम,  वंदनी ने अपनी गाड़ी पीछे मुरायी और चल पड़ी अपनी जिंदगी की सबसे कठिन और रोमांचक अनुभव के लिए।

दरअसल ग्रामीणों को ये अंदाजा नहीं था कि ट्रैक्टर जिस रास्ते से जाता है, वह रास्ता कार के लिए उतना सही नहीं हो सकता है। 

ट्रैक्टर के पहियों के निशान के पीछे रास्ते का अनुमान लगा,वह चलती जा रही थी।अभी उस रास्ते पर थोड़ी दूर ही चली थी कि बारिश शुरू हो गई। 

रास्ते में बारिश का पानी भर जाने से ये दिख नहीं पा रहा था कि कहाँ ट्रैक्टर के पहियों से कच्ची सड़क में बड़ा गड्ढा है और वहाँ से कार नहीं निकल सकती। धीरे धीरे बारिश काफी तेज हो गई।

घनघोर और तेज मूसलाधार बारिश की उस अंधेरी रात में नदी के बांध पर अंदाज से वंदनी का कार चलाना बड़ा ही जोखिम भरा था। कच्ची मिट्टी वाली बांध की उबड़ खाबड़ सड़क बारिश की वजह से काफी फिसलन भरी हो गई थी।कार का चक्का काफी फिसल रहा था। स्टीयरिंग को कंट्रोल करने में उसे एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ रही थी। 

तभी अचानक उसकी कार किसी गड्ढे में फंस गई , ना ही आगे बढ़ पा रही थी और न ही  पीछे जा पा रही थी। काफी एक्सीलेटर लेने पर भी चक्का पूरी स्पीड से अपनी जगह पर ही घूम जा रहा था। एक्सीलेटर और स्टीयरिंग पर मजबूत पकड़ बनाये रखने में वंदनी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। हल्की सी चूक होती और वह अपनी कार के साथ सीधे नदी में होती। लेकिन अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी वह कार को गड्ढे से बाहर नहीं निकाल पा रही थी।

दूर दूर तक कोई घर दिखाई नहीं दे रहा था।मदद का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उसके मोबाइल फोन की बैट्री भी खत्म होने को थी।रात के साढ़े आठ बज चुके थे ।उसने अभी तक घर पर किसी को बताया नहीं था कि वे परेशान हो जायेंगे। इस उम्मीद में कि शायद कोई मदद मिल जाये और उसकी गाड़ी निकल जाये।

तभी दूर से उसे एक लाइट अपनी ओर आती हुई दिखाई पड़ी। तेज बारिश की वजह से साफ नहीं दिख रहा था कि क्या है। जब लाइट थोड़ा नजदीक पहुँची तो पता चला कि वह लाइट एक बाइक थी जिस पर तीन लोग बैठे थे। वंदनी खुश हो गई कि तीन लोग हैं ,कार को पीछे से धक्का देंगे तो उसकी गाड़ी गड्ढे में से जरूर बाहर निकल आएगी। 

हालांकि एक बार मन में डर का एक अजीब सा खयाल भी आया। वह अकेली और वे तीन लोग - कहीं उनके इरादे गलत हुए तो! 

तब तक बाइक कार के नजदीक आ चुकी थी । वंदनी ने अपने मन के डर को एक तरफ झटका और कार का शीशा डाउन करके अपनी दाहिनी हाथ को हिला हिला कर उन्हें रुकने का इशारा करने लगी।

रुकने का इशारा पाकर बाइक उन्होंने रोक दी और पूछा क्या बात है?

"मेरी गाड़ी गड्ढे में  फँस गई है प्लीज मेरी मदद कीजिए ,अगर आप लोग पीछे से धक्का दे देंगे तो मेरी कार गड्ढे से बाहर निकल जाएगी।प्लीज मेरी मदद कीजिए प्लीज" वंदनी सब कुछ एक ही साँस में बोल गई थी।

तीनों आपस में बातें करने लगे।"एक ने कहा चलो धक्का दे देते हैं।

तभी दूसरे ने कहा इतनी तेज बारिश हो रही है, फिसलन भी बहुत है,अगर धक्का मारते हुए कार नीचे नदी में गिर गई तो, हमलोग बिना मतलब के फँस जाएंगे और

 इतनी रात हो गई है हमें अभी बहुत दूर जाना है इसलिए हम रूक नहीं सकते।"

वंदनी ने उनसे बहुत रिकुएस्ट किया परन्तु वे नहीं रुके।

तत्काल मदद की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी।उसके घर नहीं पहुँचने से सभी परेशान होंगे ,अतः वंदनी ने अब घर में खबर कर देना जरूरी समझा।

अपने पति प्रफुल्ल को फोन करके उसने कहा कि "मेरे फोन की बैट्री खत्म हो रही है शायद बीच में ही कट जाए ,मैं एक्जैक्ट कहाँ पर हूँ ये पता नहीं ।अगर कार बाहर निकल पाई तो आ पाऊँगी वर्ना रात गाड़ी में ही गुजारनी पड़ेगी।" 

प्रफुल्ल ने कहा" मैं अपने कॉन्टैक्ट में कोशिश करता हूँ शायद कोई लोकल मदद मिल जाए। तुम परेशान मत हो।"

परन्तु तेज मूसलाधार बारिश में जिससे भी प्रफुल्ल ने संपर्क किया उन्होंने बारिश रुकने के बाद मदद अवश्य ही पहुँचाने की बात कही।

तब तक गाड़ी में पीने के पानी की बोतल भी खत्म हो चुकी थी। उस दिन सुबह पेट्रोल भी नही डलवाई थी और गाड़ी रिज़र्व में आ चुकी थी। अतः ए सी नहीं चलाने की विवशता थी। बाहर तेज बरिश और अंदर तेज गर्मी और उमस से  वंदनी पसीने पसीने हो रही थी। रात गहराते जा रही थी और वह थक कर नदी के बांध पर रात भर कार में ही बिताने को मजबूर हो चुकी थी।

फिर उसने सोंचा क्यों ना एक कोशिश और करूँ।शायद गाड़ी गड्ढे से बाहर निकल जाए।

ऐसे में हिम्मत कर के वंदनी ने गाड़ी को बैक गियर में लेकर फुल एक्सीलेटर के साथ पीछे लिया और तुरन्त ही ब्रेक लगाकर कार को वहीं रोकने में सफल हो पाई। खुशी से उसकी आँखों में आँसू भर आये थे।

लगभग दो घंटे की मसक्कत के बाद नदी के बांध पर बिल्कुल नदी के किनारे से कार को चलाकर बाहर मेन रोड पर लाने में वंदनी सफल हो पाई थी।

अगर उस वक़्त सही समय पर ब्रेक नहीं लग पाता तो जितना एक्सीलेटर उसने लिया था ,वो उसका आखिरी सफर होता और वह इस समय ये सब कुछ  याद नहीं कर रही होती। 

वो कार ड्राइविंग वंदनी के जीवन का सबसे खतरनाक काम था जिसे उसने अपने जीवन में अडवेंचरस पलों की यादों के रूप में सजो रखा था।

उस परिस्थिति में एक बार तो वह भी घबरा गई थी परंतु तुरंत ही वंदनी ने अपने आप को संभाला। अपने आराध्य देव को याद किया। फिर उसके अंदर से एक आवाज आई- 

"विपरीत परिस्थितियों में घबड़ाना नहीं चाहिए।"

"जीवन और मृत्यु तो ईश्वर की देन है।ईश्वर ने तुम्हें अगर जिंदगी दी है तो कोई तुम्हें मार नहीं सकता और ईश्वर के यहाँ तुम्हारा अंत ऐसे ही लिखा है तो कोई तुम्हें बचा नहीं सकता।"

"तुम्हारा काम कोशिश करना है करो,शेष प्रभु के ऊपर छोड़ दो।"

और वंदनी की कोशिश रंग लाई थी। शायद इसलिए कहा गया  है कि "ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद आप करते हैं।"

इसी परिस्थिति के लिए कहा गया है " जा को राखे साईयां मार सके न कोई। बाल ना बांका कर सके जो जग बैरी होए।"

उस कठिन वक़्त ने वंदनी को आगे की जिंदगी जीने के लिए मजबूत बनाया था और उसे जिंदगी जीना सिखाया था। 

"दादी दादी! मुझे कहानी सुनाओ ना" 

मिहिर की तोतली आवाज से वंदनी की तंद्रा भंग हुई।

उसके बच्चों के साथ वैसा कोई हादसा  होने से बच गया , ईश्वर ने उसे एक बार फिर से नया जीवन बख्शा था। इसके लिए वंदनी अपने आराध्य प्रभु को मन ही मन धन्यवाद कर रही थी।


- पूनम एक प्रेरणा


 


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