जयंती की सार्थकता

संविधान बना, अधिकार मिले।सभी को बराबरी का दर्जा मिला। कोई जात-पात, कोई छुआ छूत नहीं होगा।  कानून की नजरों में सभी एक समान हैं। "हम स्वतंत्र भारत के बुद्धिजीवियों की श्रेणी में हैं, जो इन सामाजिक भेद भाव से ऊपर उठकर खुले मन से एक स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।''

वो द्वापर युग था, जब महाभारत काल में एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में उसका अँगूठा काटकर द्रोणाचार्य ने ले लिया था। एकलव्य को अतिमेधावी देखकरकर द्रोणाचार्य ने ये जान लिया था कि धनुर्विद्या में एकलव्य के होते हुए अर्जुन धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ नही हो सकता। अतः क्षत्रिय वर्ग ने गुरुदक्षिणा के नाम पर भील जाति में जन्मे एकलव्य को अपने रास्ते से हटा दिया और अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित कर दिये गए। 
परंतु क्या अर्जुन वाकई सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे?
नहीं! क्योंकि अगर अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होते तो कर्ण से मुकाबला करते, ना कि समाज के ठेकेदारों की आर में कर्ण के शूदपुत्र होने के कारण उसे प्रतिस्पर्धा से बाहर होने देते। उस वक्त के क्षत्रिय समाज ने उच्च वर्ग में जन्मे अर्जुन के रास्ते में आने वाले हर रोड़े (चाहे वो एकलव्य हो या कर्ण) को  साफ कर उसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित कर दिया।
जातिवाद और वर्ण व्यवस्था की भेंट चढ़ा दी गई थी कई प्रतिभाएँ।
                 आज भी कई क्षेत्रों में भेदभाव खुलेआम जारी है।सरकारी आंकड़े कुछ और बना दिये जाते है।सत्ता के आगे या तो बोलने नहीं दिया जाता है और जो कोई सच बोलकर हकीकत को सामने लाने की कोशिश करते हैं उन्हें इतना प्रताड़ित किया जाता है कि दूसरा फिर कभी सर उठाने की जुर्रत नहीं कर पाता है। 
भारतीय संविधान में इंसान को इंसान के बराबर दर्जा देने के लिए कई कानून बनाये गए है।पर उसमें वास्तविकता का रंग भरने में न जाने अभी कितने लहू पानी की तरह बहाये जाएंगे। 
हालांकि हम सभी के लहू का रंग एक ही है- लाल ।परंतु कहीं भी किसी के साथ भेदभाव होने पर या तो उसे दबा दिया जाता है या फिर हकीकत से परे रिपोर्ट कुछ और ही बना दिया जाता है और दबंगों को बचा लिया जाता है।

कोई भी क्षेत्र इस भेदभाव से अछूता नहीं है। चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, सार्वजनिक क्षेत्र हो,प्राइवेट सेक्टर हो या राजनीति का क्षेत्र हो।
कहने को तो सभी बराबर हैं पर कुछ वर्ग विशेष तक आधरभूत सेवायें भी नहीं पहुँचने दी जाती है और कुछ वर्ग विशेष को विशेष सुविधाएं प्रदान कर उन्हें बेहतर या सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया जाता है।

यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि एकलव्य से उसका अंगूठा काटकर उसे शस्त्र हीन कर दिया गया था और इस प्रकार अर्जुन को दुनियाँ का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित कर दिया गया था। 
                                              इतने युगों के बाद भी कहीं कुछ भी विशेष नहीं बदल पाया है। समाज के हर क्षेत्र में भेदभाव का विरोध कर समानता पाने का प्रयास जारी है। फलतः बहुत कुछ बदला है,परंतु काफी कुछ बदलना अभी भी बाकी है। पता नहीं अभी और कितनी सदियां बीत जाएंगी चेहरे से मुखौटा हटाने में, एकलव्य को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने में और संविधान के निर्माता की जयंती की सार्थकता सिद्ध करने में।
 
          

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