मनुष्यता

भागती हुई तेज रफ्तार जिंदगी में खून से लथपथ,तड़पते और छटपटाते हुए जीव-जंतुओं को देखकर भी हमारे अंदर भावशून्यता या कठोरता बनी रहती है और हम उनका ईलाज एवं उचित देखभाल करने की बजाय अपनी राह चल देते हैं।
एक तरफ जहां , इंसान द्वारा जानवरों को पालतू बना अपने घर में रखना, उन पर प्यार लुटाना अमीरी का प्रतीक बन गया है,वहीं दूसरी तरफ आसपास दर्द में कराहते जीव जंतुओं को देखकर भी उसमें दया के भाव नहीं जागते। इंसान संवेदनहीन हो चला है।वह भूल जाता है कि जानवरों में भी भावनायें होती है, दर्द महसूस होने पर उनकी आँखों मे भी आँसू एवं अपनापन मिलने पर आँखों में चमक देखी जा सकती है। 

प्रस्तुत चित्र के परिदृश्य में एक रिक्शा नजर आता है    
और हाड़ कंपकंपाने वाली सर्दी में अपनी पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए , झीनी सी चादर में लिपटे रिक्शा चालक को सड़क किनारे पालीथीन और टायर  की आग सेकनी पड़ रही है। विसम परिस्थितियों में भी जीवों के प्रति सेवा भाव रखते हुए एक घायल कुत्ते के सर को प्यार से सहलाते हुए उसके चोट को गर्मी देकर एवं अपनी चादर से उसके घाव को सहलाने जैसा दयालुता भरा व्यवहार उनकी इंसानियत की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है जो अमीर से ऊपर उठकर है।

आज भी ऐसे इंसान हैं जो अपनी परेशानियों को भूलकर दया धर्म का पालन करते हैं। उपरोक्त चित्र हमें यह सिख देती है कि जीवों पर दया ही मानव धर्म है जो मनुष्यता को परिभाषित करती है।

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