आज भ्रष्टाचार हमारे देश में अनेक रंग रूप में रच बस गया है। भ्रष्टाचार में लिप्त चेहरे को पहचानना आसान नहीं है। आज हर व्यक्ति अपने चेहरे के ऊपर एक नया चेहरा लगाए हुए है। भ्रष्टाचार सिर्फ कालाबाजारी, चुनाव में धांधली, पैसा लेकर काम करना, टैक्स चोरी, सप्ताह वसूली, ब्लैकमेल करना, झूठी गवाही देना, न्याय का बिक जाना, पैसे लेकर गलत एवं झूठी रिपोर्ट छापने के रूप में ही व्याप्त नहीं है। इसकी जड़े इतनी गहरी हैं कि इसके स्वरूप को पहचानना एवं इससे छुटकारा पाना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है। सिर्फ घूस लेना ही भ्रष्टाचार नहीं है। यदि हम किसी सरकारी विभाग में कार्यरत हैं और सरकारी वाहन का प्रयोग अपने निजी कार्य के लिये करते हैं तो यह भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार है।
यदि हम अपने कार्यालय समय अवधि में अपने व्यक्तिगत कार्य को करते हैं तो यह आचरण भी भ्रष्टाचार है।
यदि एक कर्मी अपने कार्यालय देरी से पहुंचता है और समय से पहले कार्यालय छोड़ता है तो यह आचरण भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
यदि एक शिक्षक कक्षा में ईमानदारी से पढाने की वजाय है बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन लेने के लिए कहता है तो यह आचरण भी भ्रष्टाचार ही है।
यदि किसी अस्पताल में मरीज को बिना किसी जरूरत के डॉक्टर कई प्रकार के जांच करवाने को कहता है तो यह भी भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा तो तब हो जाती है जब अस्पताल के आईसीयू में किसी मृत व्यक्ति का इलाज भी दो दिनों तक जारी रखा जाता है ताकि लंबा चौड़ा बिल बनाया जा सके एवं परिजनों को मरिज से मिलने तक नहीं दिया जाता है।
सब्जी एवं फल विक्रेता जब सड़े हुए सब्जी एवं फलों को उसी दाम पर बेच देता है एवं कम वजन के बदले में पूरा मूल्य लेता है तो यह भी भ्रष्टाचार ही है।
किसी संस्था में भाई-भतीजावाद के कारण किसी योग्य व्यक्ति को पदोन्नति न देकर कम योग्यता वाले व्यक्ति को पदोन्नति दे दिया जाना भी भ्रष्टाचार का ही व्यापक रूप है।
नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने के लिए हम रिश्वत देने से नहीं चूकते हैं। इससे अच्छी प्रतिभाएं हीन भावना का शिकार हो जाती हैं एवं समाज में असंतोष एवं अराजकता व्याप्त हो रही है। इस प्रकार का भ्रष्टाचार युक्त आचरण हमारे नैतिक जीवन मूल्य पर कड़ा प्रहार है।
ट्रैफिक पुलिस सुचारू यातायात के नाम पर एवं सीमा पर तैनात पुलिस सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर करोड़ों की हफ्ता वसूली करती है,जो भ्रष्टाचार को जीवंत करता है।
थाने में अगर कोई केस चल जाए तो थाना अध्यक्ष सहित थाना का हर स्टाफ दोनों पक्षों से पैसे लेकर मामले को रफादफा कर देता है। इस प्रकार का आचरण भी भ्रष्टाचार है।
थाना प्रभारी या पुलिस विभाग के किसी भी पदाधिकारी का ड्यूटी पर न होने पर भी पुलिस की वर्दी में जाकर अपने पद का प्रभाव दिखाना भी भ्रष्टाचार ही है।
एक पेंशनधारी व्यक्ति को कार्यालय के बार-बार चक्कर लगवाना भी भ्रष्टाचार है।
आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आई है बल्कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह चाट रहा है।
आज की इस वर्तमान समय में मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित 'नमक का दरोगा' कहानी ने अपनी प्रासंगिकता नहीं खोई है।तब भी समाज में भ्रष्टाचार व्याप्त था और आज भी समाज मे भ्रष्टाचार व्याप्त है। पैसे के प्रभाव में न्याय व्यवस्था तब भी बिक रही थी और आज भी नीलम हो रही है।अपनी ड्यूटी को ईमानदारी पूर्वक निभाने वाले कर्तव्यनिष्ठ मुंशी वंशीधर को नमक की तस्करी करने वाले पंडित अलोपीदीन के धन वैभव के प्रभाव में अपनी नौकरी से हाथ धोनी पड़ी था। उस समय भी पैसे से न्याय व्यवस्था को खरीद कर पंडित अलोपीदीन न्यायालय से बाइज्जत बड़ी हो गए थे और मुंशी वंशीधर जैसे ईमानदार व्यक्ति को समाज में जलील होना पड़ा था। आज भी जब बड़े-बड़े नेता राजनेता सरेआम खून करते हैं, पब्लिक को सड़कों पर रौंद डालते हैं, मासूम जानवरों का शिकार करते हैं और कमजोर एवं भ्रष्ट् तंत्र से छूट जाते हैं, इस दलील के साथ उस समय ड्राइवर गाड़ी चला रहा था ,तो नयाय प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार उसी रूप में सामने आ जाता है जैसे कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में।
ये कहानियाँ आज भी उस समय जीवंत हो उठती है जबकि बड़े-बड़े घोटालों के मुख्य अपराधियों को बचाने के लिए पूरी की पूरी रिपोर्ट बदल दी जाती है। एक स्टॉक ऑडिटर सिर्फ दो करोड रुपए के स्टॉक के लिए पैसे लेकर बीस करोड रुपए के स्टॉक होने की रिपोर्ट बनाता है। बड़े-बड़े अधिकारियों को बचाने के लिए स्टॉक ऑडिट की रिपोर्ट अपनी जरूरत के अनुसार तोड़ मरोड़ कर बनवाई जाती है।
स्टॉक में गड़बड़ी होने की आशंका की रिपोर्ट करने वाले पदाधिकारियों को प्रतिकूल ट्रांसफर और पोस्टिंग झेलनी पड़ती है। यहां भी नमक के दरोगा का चरित्र एवं उस समय का सामाजिक एवं न्यायिक परिवेश जीवंत हो उठता है।
महिला आयोग भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है।अगर किसी बड़े राजनेता की बिगड़ी हुई औलाद के प्रताड़ना की मारी कोई कमजोर वर्ग की महिला अपनी शिकायत लेकर महिला आयोग पहुंचे तो सारे सबूतों की जांच के पश्चात एवं सारे सबूत अपने पास रखने के बाद कुछ बिके हुए आयोग उस केस को दबाने का काम करते हैं ताकि आम जनता में नेता का नाम खराब ना हो और वह अबला नारी आयोग के चक्कर लगाकर थक जाती है। कुछ बिके हुए लोग जो आयोग की कुर्सी पर विराजमान है, उनके अनुसार आयोग महिला को न्याय दिलाने के लिए थोड़े ही ना बना है। आयोग का गठन तो बिगड़ैल दबंगों के दलालों को बचाने के लिए किया गया है। यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है, जहां स्त्री का चरित्र भी दाँव पर लगा दिया जाता है।
मानवाधिकार आयोग के कुछ बिके हुए जज भी जब न्याय को शर्मसार करते हो तो "भ्रष्टाचार से जीवन मूल्यों की रक्षा कैसे की जाए?" यह एक अहम सवाल है।
जीवन का कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है। यदि राजनेता चुनाव जीतने के लिए पैसे एवं शराब बाँटता है तो आम जनता भी उसे लेती है।
यदि काम को जल्दी करने के लिए कोई भी व्यक्ति अपने पद का दुरुपयोग करते हुए घूस मांगता है और अपने नैतिक मूल्यों का पतन करते हुए घूस लेता है तो हम घूस देते भी हैं।आज हम में से किसी के पास भी समय नहीं है। हम लाइन में लगकर या अगले दिन कार्यालय जाकर काम करने की बजाय कुछ पैसे देकर जल्दी काम करवाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। ऐसे में सिर्फ घूस मांगने वालों को कैसे दोष दिया जा सकता है?
विभिन्न घोटालों एवं रिश्वत खोरी ने हमारे देश को काफी पीछे धकेल दिया है। हमें जरूरत है समय रहते संभल जाने की, सचेत होने की ताकि देश को गर्त में जाने से बचाया जा सके।
भ्रष्टाचार से पूरे अर्थव्यवस्था चारमरा गई है। समाज में भय, आक्रोश, हिंसा एवं अपराध बढ़ रहा है। राजनीतिक, धार्मिक यहां तक कि प्रशासनिक एवं आर्थिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार के प्रभाव से अछूते नहीं है।
देश की सुरक्षा व्यवस्था भी इसके प्रभाव से वंचित नहीं है। राष्ट्र सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण दायित्व भी नैतिक मूल्यों के पतन के कारण भ्रष्टाचार की बेदी पर भेंट चढ़ रहे हैं।बोफोर्स तोप सौदा जैसे भ्रष्टाचार के कई उदाहरण सामने आए हैं जो राष्ट्रीय हित के विपरीत हैं एवं राष्ट्र के उन्नति एवं विकास में बाधक है।
ऐसे में एक सच्चे नागरिक के रूप में हमारा यह कर्तव्य है कि भ्रष्टाचार से मुक्ति की लड़ाई में हम अपना योगदान दें क्योंकि भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति विशेष या समाज की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है। इसका जड़ से नाश सभी के सामूहिक प्रयास से ही संभव है।
इसके लिए सरकार को कड़े से कड़े कानून बनाने होंगे। सामाजिक स्तर पर भ्रष्टाचारियों का बहिष्कार करना होगा। साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर हर नागरिक को समाज से भ्रष्टाचार को खत्म करने का संकल्प लेना पड़ेगा।
हमें उन कारणों को दूर करना होगा जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र हित के बारे में सोंचना होगा।
ईमानदारी एवं जीवन मूल्य को सर्वोपरि मानते हुए ऐसे व्यक्तियों को प्रोत्साहन देना होगा जिन्हें नैतिक मूल्यों से गिरना स्वीकार नहीं है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई इतनी आसान नहीं होगी क्योंकि यह लड़ाई हमें अपने आप से लड़नी है। बाहरी दुश्मन से लड़ना आसान होता है, परंतु अपने आप से लड़ना इतना आसान नहीं होता और हमें अपने आप से सिर्फ लड़ना ही नहीं है बल्कि जीतना है। जीतना है हमें अपने अंदर उठने वाले लालच से, द्वेष से, वैमनष्यता से, घृणा से,काम से, क्रोध से, धन-बल के प्रदर्शन से,धर्मांधता से एवं भेदभाव से।
अपने अंदर चरित्र का निर्माण कर नैतिक मूल्यों को विकसित कर, राष्ट्रभक्ति का भाव जगा कर, मानवीय संवेदनाओं को विकसित करके ही हम भारत से गरीबी, भूखमरी, तथा बढ़ती महंगाई एवं बेरोजगारी जैसी समस्याओं का मुकाबला करते हुए भ्रष्टाचार को दूर करने के प्रयास में सफल हो पाएंगे एवं समाज के निर्माण में अपना फर्ज निभा पायेंगे।
सभी के संयुक्त प्रयास से ही भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण संभव है। आईये राष्ट्र निर्माण में हम अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और भारत से भ्रष्टाचार को दूर करें।
"अपना आएंगे सदाचार, नहीं करेंगे केदाचार। भ्रष्टाचार मुक्त भारत का होगा तभी सरकार।।"
आओ एक संकल्प करें।
भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करें।
"ना घूस लेंगे ना ही घूस देंगे।
नैतिकता का हम प्रण लेंगे।।"
"नैतिक मूल्य ही हो आधार।
उससे गिरना नहीं स्वीकार ।।"
" सभी मिलकर करेंगे प्रहार।
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार ।।"
"भ्रष्टाचार मिटाने का करें आह्वान।
तभी बनेगा अपना भारत महान ।।"
"भ्रष्टाचार की लड़ाई बाहरी शत्रु से नहीं,
हमें खुद अपने आप से लड़नी है ।"
"अपने अंदर छुपे अनैतिकता पर,
गहरी बार करनी है ।।"
" भारत के नव निर्माण में ,
यही होगा हमारा अभीष्ट योगदान।
भ्रष्टाचार मिटाकर ही ,
बनेगा अपना भारत महान।।"
भ्रष्टाचार मिटाकर ही ,
बनेगा अपना भारत महान।।"
आज हम जिस समाज में रहते हैं, वहां नैतिक मूल्यों का हर तरह से पतन हो चुका है। भ्रष्टाचार इस कदर तक जहर कर गया है कि घूस लेने वाला व्यक्ति भी घूस देखकर ही छूट जाता है और ईमानदार व्यक्ति को मुँह चिढ़ाता है। ऐसे में जरूरत है "नमक के दरोगा" कहानी के दमदार पात्र पंडित अलोपीदीन जैसे किरदार निभाने वाले व्यक्तित्व की, जो सत्य और ईमानदारी की राह चलने वाले नायाब हीरे को पहचानते हैं और उसे सम्मानित करते हैं। मुंशी वंशीधर को अपनी पूरी जायदाद का प्रबंधके बनाते हुए कई गुना बढे हुए तनख्वाह और बहुत सारी सुख सुविधाओं के साथ उन्हें इज्जत प्रतिष्ठा देते हुए अपने यहां नौकरी पर रखने की गुजारिश करते हैं।पंडित अलोपीदीन यह सच स्वीकार करते हैं कि भले ही अदालत में मैं जीत गया परंतु सही मायने में मैं आपसे हर गया हूं। वे स्वीकार करते हैं कि मुंशी वंशीधर की ईमानदारी जीत गई है और वे अपने आप को गुनाहगार मानते हैं एवं कहते हैं कि उनका प्रायश्चित तभी होगा जब मुंशी वंशीधर उनके जायदाद के प्रबंधक की नौकरी स्वीकार करके उन्हें क्षमा करेंगे। आज के समय में हमें भी अपने नैतिक मूल्य को इतना ऊँचा उठाना होगा कि कोई भी प्रलोभन हमें अपनी सत्य और ईमानदारी की राह पर चलने से डिगा ना सके।
हमें अपने समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के सबसे मजबूत हथियार को धारदार बनाना होगा। ईमानदारी की राह पर चलने के लिए उच्च नैतिक मूल्य अपनाने होंगे।
कार्यालयों में भ्रष्टाचार युक्त सिस्टम का साथ न देकर ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने वाले कर्मचारियों को पहचान कर उन्हें उचित सम्मान, पदोन्नति एवं प्रतिष्ठ प्रतिष्ठा प्रदान करनी होगी ना कि उन्हें अपमानित, प्रताड़ित एवं बहिष्कृत करना होगा। आज के युग में ऐसे जीवन मूल्यों के धनी व्यक्ति ही भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एकमात्र हथियार हैं।
भले ही हमें आदर्श की राह पर चलते हुए कठिनाइयों भरे रास्तों से गुजरना पड़े। जीवन में सुख सुविधाओं की वस्तुओं की कमी झेलनी पड़े, परंतु थोड़े से लालच के कारण हमें अपना ईमान नहीं बेचना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे मुंशी वंशीधर को पंडित अलोपीदीनद का कोई भी प्रलोभन अपने कर्तव्य पथ से, ईमानदारी की राह से डगमगा नहीं पाया था। तभी हम भ्रष्टाचार जैसे दैत्य का मुकाबला कर पाएंगे।
हमें अपने अंदर वह नैतिक मूल्य विकसित करना ही पड़ेगा, जब हम यह कह सके कि मैंने अपने कर्तव्य का निर्वहन पूरी ईमानदारी से किया है और जब जीवन चक्र समाप्त करके ऊपर जाए तो ईश्वर से आंख में आंख मिलाकर कह सकें कि हमने अपने बच्चों की परवरिश में नापाक तरीके से कमाए हुए पैसे नहीं लगाए हैं। एक दिन तो हम सबको यह दुनिया छोड़कर जाना ही है। जो कुछ यहां से लिया है वह यही छोड़ जानी है। खाली हाथ आए थे, खाली ही जानी है। कुछ भी यहां से अपने साथ नहीं ले जा सकते हैं। फिर यह झूठ-फरेब, छल-कपट, मारामारी किस लिए? हम सबको पाप-पुण्य एवं ईश्वरीय शक्ति में आस्था रखते हुए ईमानदारी पूर्वक जीवन जीने की कला सीखनी होगी। तभी भ्रष्टाचार नामक रक्तबीज जैसे दानव से हम जीत सकते हैं।
आइये ऊंचे नैतिक मूल्यों के संकल्प के साथ हम सभी सरकारी व्यवस्था एवं कड़े कानून व्यवस्था के साथ एक जुट होकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत का नव-निर्माण करें एवं सच्चे भारतीय नागरिक होने के अपने पावन कर्तव्य का निर्वहन करें।
"सभी मिलकर करें प्रतिकार।
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार ।।
सबके होठों पर होगी मुस्कान।
भारत बनेगा अपना महान ।।"