वास्तविक सम्मान



सुमन घर के काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी।हर्ष को स्कूल भेजने के बाद  सामानों को अपनी जगह व्यवस्थित करके उसे समय से अस्पताल भी पहुँचना था। सुमन की सास अरुणा जी अस्पताल में भर्ती थी। रात में शेखर माँ की देखभाल के लिए अस्पताल में रुक रहा था और सुबह की जिम्मेदारी सुमन ने अपने ऊपर ले रखी थी। कुछ दिनों पहले अरुणा जी सड़क हादसे का शिकार हो गई थीं,जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गई थी।वह रह रह कर बेहोश हो जा रही थीं। उनकी स्थिति को कन्ट्रोल करने में डॉक्टर को काफी मेहनत करनी पड़ी थी। हाई ब्लड प्रेशर और शुगर की मरीज थीं अरुणा जी। डॉक्टर ने आश्वासन दिया था कि जल्द ही अरुणा जी पूरी तरह ठीक होकर घर जा सकेंगी। 

जब से अरुणा जी का एक्सीडेंट हुआ था सुमन उनकी सेवा में जी जान से लगी थी। ईश्वर से हर वक़्त उनके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रही थी। 

सुमन के मोबाइल फोन की घंटी बज रह थी। हर्ष के स्कूल से फोन था । हर्ष आज स्कूल नहीं पहुंचा था। हर दिन की तरह हर्ष अपने नियत समय पर घर से स्कूल के लिए निकला था ।पता नहीं क्या हुआ होगा रास्ते में।अगर हर्ष स्कूल नहीं पहुंचा तो आखिर कहां गया होगा? सुमन का मन किसी होनी अनहोनी की आशंका से कांप उठा।पता नहीं क्या होने वाला है? एक के बाद एक नई मुसीबत परिवार पर आते ही जा रही थी। उसने तुरंत शेखर को फोन किया कि हर्ष स्कूल नहीं पहुंचा है जल्दी से पता करें। सुमन की आवाज में काफी घबराहट थी। शेखर ने सुमन को कहा" संभालो अपने आप को ईश्वर पर भरोसा रखो। हमारे बेटे हर्ष को कुछ नहीं होगा ।वह बिल्कुल ठीक होगा। मैं अभी पता करता हूं।"

हर्ष हमेशा दादा दादी के साथ रहा करता था। अजय जी सुबह की सैर से लौटते वक्त हर्ष के लिए उसके पसंद की चॉकलेट लाना नहीं भूलते थे। जैसी ही वे घर में घुसते हर्ष दौड़कर उनकी गोद में चढ़ जाता। अजय जी हर्ष को स्कूल छोड़ने जाते थे।दादाजी की उंगली पड़कर स्कूल जाना हर्ष को काफी आनंद देता था। रात को सभी एक साथ डाइनिंग टेबल पर खाना खाते थे। सुमन भी अजय जी अरुणा जी की दवा के समय का पूरा ध्यान रखती थी। कुछ समय बाद अजय जी बीमार पड़ गए और सबको रोता छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। 

अजय जी के जाने के बाद अरुण जी काफी दुखी हो गई और गुमसुम, उदास और चुपचाप सी रहने लगीं थी।हर्ष दादा दादी के साथ बिताए पलों को याद करके दुखी रहने लगा। फिर उसने दादी को सदमे से बाहर निकालने के लिए एक उपाय सोचा और दादी से जिद करने लगा कि अब से स्कूल में आपके साथ ही जाऊंगा।पोते के प्यार भारी जिद के आगे अरुणा जी को झुकना पड़ा और वह हर्ष को स्कूल पहुंचने के लिए तैयार हो गई।अब हर्ष रोज ही स्कूल अरुणा जी के साथ जाने लगा। धीरे-धीरे अरुणा जी उस सदमे से बाहर आ गयीं और हर्ष के साथ उनका समय अच्छा बीतने लगा। सुमन और शेखर भी अरुणा जी का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। एक दिन हर्ष को स्कूल छोड़कर लौटते वक्त अरुणा जी ट्रैफिक सिग्नल ठीक से नहीं देख सकीं और जेब्रा क्रॉसिंग पर सड़क पार करते हुए वे दुर्घटनाग्रस्त हो गई।तब से वह अस्पताल में भर्ती थीं।

शेखर हर्ष को खोजने उसके स्कूल की तरफ चल पड़ा था। हर्ष एक अच्छा लड़का था और हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहता था। स्कूल में सभी टीचर्स का बड़ा प्यारा था। कभी स्कूल से बहाना बनाकर छुट्टी नहीं लेता था। ऐसे भी हर्ष के स्कूल नहीं पहुंचने से सुमन एवं शेखर काफी परेशान हो रहे थे। अभी पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने जा ही रहे थे कि उन्हें सामने से हर्ष आता हुआ दिखाई दिया। सुमन दौड़ करो से लिपट पड़ी और चूमने लगी। कहां था तू? तू ठीक तो है ना ?कहां था अब तक? पता भी है हम सब कितने परेशान थे ? बहुत सारे सवाल सुमन ने एक साथ पूछ डालें।हर्ष ने बड़े प्यार से बोल "मां संभालिए अपने आप को मुझे कुछ नहीं हुआ है। मैं बिल्कुल ठीक हूं ।मैं बताता हूं कि सुबह क्या हुआ था"। 

आज जब मैं स्कूल जा रहा था तो सिग्नल पर रेड लाइट थी। सारी गाड़ियां रुकी पड़ी थी। जेब्रा क्रॉसिंग पर हम सड़क पार कर रहे थे तभी सिग्नल हरा हो गया और गाड़ियों के हॉर्न की तेज आवाज से एक बूढी दादी जो सड़क पार कर रही थी उनका संतुलन बिगड़ गया और उनकी लाठी गिर गई। मैं तुरंत दौड़ कर गया उनके लाठी उठाई और फिर उनकी उंगली पड़कर उन्हें सड़क पार करवाया।दादी को देखने में भी थोड़ी परेशानी थी। वह काफी परेशान दिख रही थी।उन्हें अस्पताल जाना था। उनकी तबीयत ठीक नहीं थी।ऐसे में मुझे उन्हें अकेले छोड़ना उचित नहीं लगा। मैंने उन्हें अस्पताल में दिखाने के बाद दवाई दिलाकर फिर घर पहुंचाने चला गया था। इसमें मुझे देर हो गई। मैं आप लोगों से क्षमा चाहता हूं।मेरी वजह से आप लोगों को परेशान होना पड़ा।सुमन और शेखर दोनों ने उसे प्यार से गले लगा लिया।और कहा नहीं बेटा तुम्हें क्षमा मांगने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि तुमने तो जो काम किया है उसे हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो गया है।तुमने आज साबित कर दिया है कि हमारी परवरिश और संस्कार में कोई कमी नहीं है एवं तुम्हारे टीचर्स ने तुम्हें सार्थक शिक्षा दी है जिसे तुमने वास्तविक जीवन में उतारा है।तुमने हम सबको शिक्षा दी है कि हमें हमेशा बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। हमेशा उनकी मदद करनी चाहिए। हमें हमेशा ट्रैफिक नियम का पालन करना चाहिए ताकि स्वयं भी सुरक्षित रहे एवं दूसरे की सुरक्षित रहे। हमें सड़क पर तेज हॉर्न बिना वजह नहीं बसना चाहिए।  तुमने आज साबित कर दिया कि इस दुनिया में इंसानियत से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं है।तुमने आज सही मायने में बुजुर्गों के प्रति तुम्हारे दिल में छुपे वास्तविक सम्मान को सिद्ध कर दिया है।तुमने समाज को एक नई दिशा दिखाई है।

अब जल्दी चलो अस्पताल में दादी इंतजार कर रही होगी। अरुणा जी को देखते ही हर्ष मेरी दादी कहते हुए उनके गले लग गया और काफी देर तक उनसे लिपटा रहा। 


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